स्कूल नियोजन में प्रधानाचार्य की भूमिका तथा प्रबन्धीय कार्य examstd


विद्यालय
संगठन का क्या अर्थ
है?

विद्यालय संगढन से तात्पर्य स्कूल की व्यवस्था से है। स्कूल व्यवस्था का कार्य प्रधानाचार्य के माध्यम से प्रबन्धकारी समिति के द्वारा किया जाता है। इस तरह से विद्यालय का कार्य केवल पढ़न-पाठन, समय सरणी बनाना, अध्यापको के कार्यों का वितरण करना की विद्यालय संगठन नहीं है।  विद्यालय संगठन तो कुछ इससे बढ़कर ही है। 

विद्यालय संगठन के उद्देश्य 

  1. उचित वातावरण का निर्माण करना जो सीखने और सीखने में सहायता प्रदान कर सके। 
  2. शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता करना। 
  3. ऐसे नागरिको का निर्माण करना जो समाज के लिये त्याग कर सके। 
  4. छात्रों में सामुदायिक भावना का विकास करना। 
  5. स्वस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना। 
  6. छात्र तथा छात्राओं की कार्यकुशलता में वृद्धि करना। 
  7. सहयोगात्मक ढंग से कार्य करने की आदत डालना। 
  8. शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन देना

प्रधानाचार्य के कार्य(Functions of Principle) 

प्रधानाचार्य के प्रमुख कार्यों का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है
  1. शैक्षिक क्रियाओं सम्बन्धी कार्य– शिक्षण क्रियाओं के रूप में प्रधानाचार्य द्वारा पाठ्यक्रम का चयन करना, शिक्षण विधियों व सहायक सामग्री की व्यवस्था करना, मूल्यांकन करना, निर्देशन देना आदि कार्य किए जाते हैं, ताकि विद्यालय का चहुँमुखी विकास किया जा सके।
  2. शिक्षकों सम्बन्धी कार्य- विद्यालय के समस्त कार्यक्रमों का सफलता तथा असफलता उसके राक्षका पर निर्भर होती है। शिक्षक ही केवल वह एक साधन है जो स्कूल को गतिशील बनाए रखता है। इसक बिना विद्यालय शन्य बना रहता है। अत: प्रधानाचार्य द्वारा शिक्षकों को मार्ग-दर्शन व परामर्श देना, उन्नति के अवसर प्रदान करना. कार्यभार सन्तुलित करना, सभी सुविधाएँ देना तथा कार्य का मूल्यांकन करना आदि कार्य किए जा सकते है। 

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  1. छात्र वर्ग सम्बन्धी कार्य –आज के युग में विद्यालय, प्रशासन का यह प्रमुख कार्य है कि प्रत्येक एसछात्र को ऐसे उत्तरदायी,स्व:अनुशासित, उत्साही तथा एक सशक्त कार्यकर्ता के रूप में तैयार करे जो अपने परिवार, समाज राजनीति प्रणा जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावी रूप से कार्य कर सके। इस प्रकार प्रधानाचार्य छात्रा को उचित निर्देशन एवं परामर्श देना उनकी संख्या निश्चित करके कक्षा तथा विषय आदि में दर्ज  करना, प्रगति सम्बन्धी रिकार्ड तैयार करना, परीक्षा व उपयुक्त मूल्याकन का व्यवस्था, समचित अनुशासन की व्यवस्था करना छात्र वर्गीकरण के लिए नीतियाँ बनाना, पिछड़े छात्रों के लिए अलग सेशिक्षा की व्यवस्था करना एवं वित्तीय सहायता देना आदि कार्य किए जाते हैं।
  2. विद्यालय प्रबन्धन सम्बन्धी कार्य हेनरी स्विलिन महोदय के अनुसार “विद्यालय प्रबन्धन का मजतवपूर्ण कार्य शिक्षकों, छात्रों तथा अन्य कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग स्थापित करना है” अतः विद्यालय प्रबन्धन का मार्गदर्शन उत्तम शिक्षक छात्र सहयोग पर ही आधारित होता है।  इन्हे ही प्रशासन का उत्तम साधन माना गया है। इस प्रकार प्रधानाचार्य द्वारा विद्यालय प्रबन्धकों को उचित निर्देश प्रदान करना, प्रबन्ध सम्बन्धी नीतियों को निश्चित करना, शिक्षक संघ का गठन करना, विकास समितियों का गठन करना, उपलब्धि की जाने हेतु एक संयोजक की नियुक्ति करना आदि कार्यो में किया जाता है।
  3. वित्त सम्बन्धी कार्य –मारेफेट (Morphet) के अनुसार, “शिक्षा के क्षेत्र में केवल लेखा-जोग रखना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस धन से अधिकतम शैक्षिक उपलब्धियाँ प्राप्त करनी है।” यह केवल उचित प्रशासन द्वारा ही सम्भव है। इस प्रकार प्रधानाचार्य द्वारा विद्यालय वित्तीय योजना का निर्माण करना आय-व्यय का बजट बनाना, लेखा-जोखा का विवरण रखना सभी कर्मचारियों के वेतन की व्यवस्था करना, आय-व्यय का मूल्यांकन करना, प्रबन्धन समिति के सभी मदों का विवरण रखना, वित्तीय विभाग व शिक्षा विभाग से सम्बन्ध रखना तथा वित्त के अनुसार कार्यों की व्यवस्था करना आदि विशेष कार्य किए जाते हैं।
  4. विद्यालय कार्यालय सम्बन्धी कार्य-कार्यालय द्वारा विद्यालयों की समस्त गतिविधियों को विकसित किया जाता है। इसका सम्बन्ध सभी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं से रहता है। अत: उत्तम कार्यालय ही उत्तम विद्यालय का निर्माण करता है। इसी के द्वारा विद्यालय की प्रगति को आँका जाता है। इस प्रकार प्रधानाचार्य द्वारा कार्यालय का निरन्तर आडिट (Audit) कराना, सभी वित्तीय रिकार्डों की जाँच करना, वार्षिक व अर्धवार्षिक सहायता प्रतिवेदनों का निरीक्षण कराना, वित्त सम्बन्धी उचित परामर्श प्रदान करना, आय-व्यय सम्बन्धी रूपरेखा तैयार करके देना आदि कार्य किए जाने चाहिए। वार्षिक बजट भी प्राचार्य ही तैयार करता है।
प्रधानाचार्य के प्रबन्धकीय कार्य (Functions of Principal in Management) 
प्रधानाचार्य के प्रमुख प्रबन्धन के कार्यों का विवरण निम्न प्रकार है
A . नियोजन कार्य (Planning as Functions)
1. विद्यालय के खुलने से पूर्व -इस स्तर पर प्राचार्य को निम्नलिखित कार्यों का नियोजन करना होता है
  • ग्रीष्मकालीन अवकाश के पश्चात् विद्यालय खुलने की तिथि की घोषणा की जाती है। विद्यालय में प्रवेश की अन्तिम तिथि, एक आवेदन-पत्र प्राप्त किए जा सकेंगे। कुछ कक्षाओं के लिए प्रवेश परीक्षा का भी आयोजन किया जाएगा। परीक्षा की तिथियाँ तथा परीक्षा की व्यवस्था भी की जाएगी। विद्यालय के नोटिस बोर्ड पर सभी सूचनाओं को अंकित किया जाता है। यदि सम्भव हो सके तो समाचार-पत्र में भी विज्ञापन दे दिया जाता है।
  • प्रवेश के नियमों तथा प्रक्रिया को तैयार किया जाता है। इसके लिए एक प्रवेश समिति का गठन किया जाता है, जिसका उत्तरदायित्व प्रवेश प्रक्रिया का सम्पादन करना तथा पूरा करना होता है। कक्षा में छात्रों की संख्या भी सुनिश्चित की जाती है। प्रवेश सम्बन्धी समस्याओं का प्रवेश समिति ही समाधान करती है।
  • प्राचार्य के विद्यालय के फर्नीचर तथा साज-सज्जा की भी व्यवस्था करनी होती है।संसाधन, उपकरण तथा पुस्तकों का भी पुस्तकालय में आयोजन करना होता है। टूटे हुये फर्नीचर को ठीक करना होता।  प्रधानाचार्य इन कार्यों का उत्तरदायित्व वरिष्ठ अध्यापकों को भी सौप देता है और अधिकार भी देता है।
  • विद्यालय में आवश्यक सामग्री उपस्थित रजिस्टर, डायरी, चाक, डस्टर, श्यामपट्ट आदि की व्यवस्था करता है। 
  • प्राचार्य विद्यालय शिक्षा सत्र का कलेण्डर भी तैयार करता है जिसमें पूरेसत्र क्रिया, अन्य मों तथा अवकाश की तिथियों का विवरण दिया जाता है।
  • आवश्यकतानुसार शिक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियाँ भी करता है। कार्यालय साबन्धी रजिस्टारों की व्यवस्था की जाती है।
  • प्रधानाचार्य विद्यालय भवन की पुताई तथा टूट-फूट को ठीक कराता है। फर्नीचर की पॉलिश भी कराता है।। जिससे नए सत्र में विद्यालय भवन नया-सा दिखाई दे। विद्यालय का भौतिक छात्रों के लिए आकर्षक लगना चाहिए। 

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