प्रयत्न और भूल का सिद्धांत
किसी कार्य को हम एकदम से नहीं सीख पाते हैं। सीखने की प्रक्रिया में हम प्रयत्न करते हैं और बाधाओं के कारण भूलें भी होती हैं। लगातार प्रयत्न करने से सीखने में प्रगति होती है और भूलें कम होती जाती हैं। अत: किसी क्रिया के प्रति बार-बार प्रयास करने से भूलों का ह्रास होता है, तो इसको प्रयत्न और भूल का सिद्धान्त कहते हैं।
वुडवर्थ के अनुसार- प्रयत्न और त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं, जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।
एल. रेन (L. Rein) के अनुसार– संयोजन सिद्धांत वह सिद्धान्त है, जो यह मानता है कि प्रक्रियाएँ, परिस्थिति और प्रतिक्रिया में होने वाले मूल या अर्जित कार्य सम्मिलित हैं।
प्रयत्न और भूल के सिद्धांत का जन्म
इस सिद्धांत को थार्नडाइक ने 1898 में प्रतिपादत किया था। इस सिद्धांत द्वारा उन्हे यह पाता लगया की पशुओं और मानवों को सिखाने में प्रयासों और भूलों का विशेष महत्व है। थार्नडाइक बहुत से प्रयोग जानवरों पर किए जो इस सिद्धांत को साबित करते है। इस सिद्धांत को संयोजनवाद और उद्वीपन – अनुक्रिया का सिद्धांत भी कहां जाता है ।
अधिगम में बहुत से अलग अलग क्रियाओं में सम्बन्ध स्थापित किए जाते हैं तथा सम्बन्ध स्थापना का कार्य हमारा दिमाग करता है जैसे-जैसे हमारी कोशिश बढ़ती है वैसे-वैसे गल्तियां कम होती हैं। इस प्रकार हम अपनी गल्तियों से बहुत कुछ सीखते हैं। इस सिद्धांत में हम बहुत कुध सीखते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई जीव नई परिस्थितियों में रखा जाता है तो वह बिना सोचे समझे कई तरह के प्रयास करता है।
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जाने माने व्यवहारवादी इ.एल. थार्नडाइक (E.L Thorndike) द्वारा किया गया। क्योंकि इन्होंने सिद्धान्तों की व्याख्या व्यवहारवादी सिद्धान्तों के अनुकूल की है। Thorndike का यह सिद्धान्त Stimulus (उत्तेजना)-Response (प्रतिक्रिया) (S-R) पर आधारित है।
थार्नडाइक का सिद्धान्त अधिगम के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण है। थार्नडाइक का मानना था कि प्रत्येक अनुक्रिया के पीछे किसी न किसी उद्दीपन का हाथ होता है। ये उद्दीपक प्राणी पर इतना प्रभावशाली परिणाम डालते हैं, जिसके फलस्वरूप वह एक विशेष प्रकार की अनुक्रिया करने लगता है। इसे उद्दीपक अनुक्रिया सम्बन्ध के द्वारा प्रकट किया जाता है। थार्नडाइक का कहना है कि पशु या मनुष्य किसी कार्य को प्रयल एवं भूल द्वारा सीखता है। Thorndike ने इसे शुरू में चयन एवं संयोजी नाम दिया बाद में प्राणी द्वारा भूल करने के बाद किसी एक सही अनुक्रिया को चुनकर कार्य करने के सिद्धान्त को प्रयत्न और मूल सिद्धान्त (Trial and Error Theory) कहा।
थार्नडाइक के सिद्धांत के अन्य नाम (प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धांत के अन्य नाम)
1-उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धान्त
2-(S.R. Bond)सिद्धान्त
3-सह सम्बन्धवाद का सिद्धान्त
4-चयन का सम्बन्ध का सिद्धान्त
5-परमाणु-बालू की टीला सिद्धान्त
6-प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त
यह क्रिया निर्धारक या दोषपूर्ण होती है। जब बार-बार जीभ को उन्हीं हालातों में रखा जाए तो असफल क्रियाएं कम हो जाती हैं, अर्थात जीव या प्राणी अलग अलग ही कोशिशों एवं भूलों के माध्यम से ठीक ठीक करना सीखता है। समस्या के समाधान की प्राप्ति के बाद प्राणी को जो संतुष्टि मिलती है उसके कारण उसे अभी प्रेरणा प्राप्त होती है जिसके परिणाम स्वरुप वह उसी क्रिया को दुबारा दोहराता है तथा असफल विधि को थार्नडाइक ने प्रयास एवं भूल द्वारा सीखने के रूप में परिभाषित किया है।
थार्नडाइक का बिल्ली पर प्रयोग
थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धान्त की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों पर प्रयोग किए। थार्नडाइक ने एक भूखी बिल्ली को पिंजड़े में बन्द करके एक प्रयोग किया। भूखी बिल्ली को पिजड़े के अन्दर रखा, पिंजड़े का दरवाजा एक खटके के दबने से खुलता था। माँस का टुकड़ा पिजड़े से बाहर रखा।
बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। उद्दीपक के कारण उसमें प्रतिक्रिया आरम्भ हुई। माँस का टुकड़ा प्राप्त करने हेतु, पिजड़े से बाहर आने के लिए अनेक असफल प्रयास करते-करते अन्ततः वह पिंजड़ा खोलना सीख ही गई।इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध (S-R Bond) स्थापित हो गया। प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जब हम किसी काम को करने में त्रुटि या भूल करते हैं और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है। वुडवर्थ (Woodworth) ने लिखा है-“प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते है, जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।
उद्दीपन– मांस का टुकड़ा
अनुक्रिया– बिल्ली द्वारा मांस प्राप्त करने के प्रयास
नोट- पहले उद्दीपन (Stimulus) आता है उसके पश्चात उसे प्राप्त करने के लिए अनुक्रिया (Response) की जाती है-(S-R Theory)
लायड़ मार्डन द्वारा किया गया कुते पर प्रयोग-एक कुत्ते को ऐसे लोहे के पिंजरे में बंद कर दिया गया जिसका दरवाजा स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता था। कुत्ते ने कई प्रयास किए और अन्त में दरवाजा खोल लिया।
मैकङ्यूगल द्वारा चूहे पर किया गया प्रयोग- इस प्रयोग में भी चूहे को एक ऐसे छोटे बक्से में बंद कर दिया गया जिसका रास्ता छुपा हुआ था चूहे ने 165 बार गलतियां करने के पश्चात अंत में ठीक रास्ता ढूंढ लिया।
प्रयास और भूल के प्रयोग के निष्कर्ष ( Conclusion of Trail and Error Experiments) –
यह सभी प्रयोग प्रयत्न और भूल द्वारा सीखने के सिद्धांत की पुष्टि करते हैं कोई भी नया कार्य सीखने में व्यक्ति से शुरू में गलतियां होती है और तब वह ठीक ढंग अपना पता है संगीत के बाजे सीखने में टाइपिंग सीखने में लिखना सीखने में और किसी भी नई परिस्थिति में पड़ जाने पर व्यक्ति को इस विधि का सहारा लेना पड़ता है लेकिन मुख्य रूप से इस प्रकार सीखना व्यापक पैमाने पर शिष्यों और पशुओं में होता है।
इस प्रकार सीखना में व्यापक दशाओं का होना आवश्यक है।
1.पशु या मनुष्य के सामने लक्ष्य स्पष्ट रूप से हो या वह पूर्ण रूप से प्रेरित हो, जैसे बिल्ली के सामने मछली प्राप्त करके अपनी भूख मिटाना।
- जब व्यक्ति या पशु ऐसी परिस्थिति या समस्या में पड़ जाए कि उसका हाल समझ में ना आता हो।
प्रयास और भूल के सिद्धांत की विशेषताएं
(1) प्रेरक की उपस्थिति, जो सीखने के प्रति रुचि की निरन्तरता को बनाये रखता है।
(2) अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करना, जो सही भी होती हैं और गलत भी।
(3) भूलों या गलत क्रियाओं को न करना, बल्कि धीरे-धीरे समाप्त करना।
(4) लक्ष्य प्राप्ति प्रतिक्रियाओं एवं सहायक प्रतिक्रियाओं में क्रमिक संयोजन स्थापित करना।
(5) अधिगम ही संयोजन है- थार्नडाईक ने अपने प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला कि अधिगम की क्रिया का आधार स्नायुमंडल है। स्नायुमंडल में एक नाड़ी का दूसरी नाड़ी से सम्बन्ध हो जाता है।
(6) संयोजन सिद्वांत- संयोजन सिद्धांत मनोविज्ञान के क्षेत्र में नवीन विचारधारा तो है ही, साथ ही वह अधिगम का महत्वपर्ण सिद्धांत भी है।
(7) यह मत संयोगों को बहुत महत्त्व देता है। जो व्यक्ति जीवन में अधिक संयोग बना पाता है उतना ही बुद्धिमान कहलाता है।
प्रयास एवं भूल द्वारा सीखने के आवश्यक तत्व
(8) आभिप्रेरणा- प्रेरणा के अभाव में इस सिद्धांत के अनुसार सीखना कठिन है। किसी प्रकार के तनाव के अभाव में व्यक्ति तत्काल स्वयं को समायोजित करने में सफल हो सकता है। व्यवहार में कोई परिवर्तन नही होता इसलिए प्रेरणा के अभाव में सीखना कठिन होता है।
(9) बाधा– किसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए बाधा का होना आवश्यक है नहीं तो व्यक्ति कुछ भी नहीं सीख सकता इसी बाधा को दूर करने के प्रयास करके मनुष्य सीखता है।
(10) निरर्थक अनुक्रियाए– इस प्रयोग के दौरान मनुष्य कुध निरर्थक क्रियाएं करता है, लेकिन यह हमारे लिए सार्थक सिद्ध होती हैं क्योंकि इनसे ही पता चलता है कि हमारी समस्या के समाधान के लिए यह क्रियाए अनुकूल है या नहीं।
(11) व्यर्थ क्रियाओं को दूर करना– इस सिद्धांत में निरर्थक क्रियाओं गलत और असफल अनु क्रियाओं को एक-एक करके दूर किया जाता है और सही क्रिया की जाती है।
(12) अचानक सफलता- इस सिद्धांत में अचानक सफल अनुक्रिया का ज्ञान होता है।
(13) चयन- असफल क्रियाओं में से सही अनुक्रिया का चयन किया जाता है।
(14) स्थिरता- तेरे प्रयास करते हुए जीव अपनी भूलों को कम करते हुए अनु क्रियाओं के स्थान पर सही अनु क्रियाओं को दिखाना सीख जाते हैं।
थॉर्नडाइक सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Thorndike Theory)
(1) यह सिद्धान्त काफी समय लेता है क्योंकि इसमें व्यर्थ के प्रयत्न पर काफी बल दिया जाता है।
(2) यह सिद्धान्त सीखने की प्रक्रिया को यात्रिक बना देता है तथा मानव के विवेक, चिन्तन आदि गुणों की अवहेलना करता है।
(3) यह सिद्धान्त सिर्फ किसी क्रिया को सीखने की विधि बतलाता है उसके सीखने का कारण नहीं बताता।
(4) जब किसी कार्य को एक विशेष विधि से सीख लिया जाए तो उसके लिए पुनः बार-बार प्रयत्न करना निरर्थक है।
प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त का अधिगम में महत्त्व
- छात्र प्रोत्साहन – इस सिद्धान्त से स्पष्ट होता है कि छात्र को सीखने और उत्साहित करने के लिये उनमें प्रेरणा, लक्ष्य, उद्देश्य का होना आवश्यक है।
- स्वकार्य की प्रवृत्ति में विकास – समस्या का समाधान स्वयं करें, ताकि वे अपने में विश्वास पैदा कर सकें।
- अभ्यास पर बल – छात्रों को अभ्यास का अर्थ, प्रयोग एवं महत्त्व बताना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति अभ्यास से ही महान् बनता है।
- चिन्तन शक्ति का विकास – इस सिद्धान्त में बालकों का मस्तिष्क लगातार क्रियान्वित रहता है। वह प्रत्येक प्रतिचार को तर्क शक्ति पर तोलता है।
- समस्या समाधान – बालकों के सामने समस्याएँ आती हैं। अतः प्रयत्नों के द्वारा ही वे अपनी समस्या का हल खोज लेते हैं।
- समय एवं शक्ति की बचत – प्रयत्न एवं भूत के सिद्धान्त के द्वारा सीखने पर बच्चों की शक्ति, धन, समय की बचत होती है।
- सभी वर्गों के लिये – बच्चे एवं बड़ों, मन्द बुद्धि या प्रतिभाशाली सभी वर्गों के लिये यह सिद्धान्त उपयोगी है।
प्रयास और मूल सिद्धांत की शैक्षिक उपयोगिता
1. काम करके सीखना-यह सिद्धांत विद्यार्थियों को आपने हाथ से काम करके सीखने का मौका देता है।
2.सरल से कठिन– इस सिद्धांत के अनुसार अध्यापक विद्यार्थी को सरल से कठिन ज्ञान से अज्ञात और प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर चलने को कहे।
3-लक्ष्य- केन्द्रति -हर क्रिया में एक लक्ष्य होता है और मनुष्य उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है।
4-स्वः अधिकार– इस सिद्धांत के अनुसार विद्यार्थी अपने आप सीखने की कोशिश करते हैं। उनके प्रयास में पहले तो त्रुटियां होती है लेकिन धीरे-धीरे उनकी कमियां कम होने लगती है।
5-अभ्यास द्वारा सीखना- यह बात प्रसिद्ध है कि अभ्यास व्यक्ति को कुशल बना देता है अभ्यास के माध्यम से ही शिक्षक बालक को ज्यादा से ज्यादा शिक्षा दे सकते हैं।
6-सूझबूझ द्वारा सीखने में प्रयोग- सूज भुज द्वारा सीखने की प्रक्रिया में प्रयास और भूल विधि का समावेश होता है इसके बिना सूज भुज का प्रयोग नहीं हो सकता।
7-कौशल का विकास- इस सिद्धांत के द्वारा छात्रों में उनके कौशलों का विकास किया जा सकता है उदाहरण के लिए नाचना, गाना, संगीत सिखाना, टाइप करना आदि।
8-अच्छी आदतों का विकास- इस सिद्धांत से बालक में अच्छी आदतें पैदा होती है जैसे बड़ों का आदर करना, धर्य रखना, मेहनत करना, सत्य बोलना बड़ों का आदर करना।
9-प्रेरणा का महत्व- ठंडाई के इस सिद्धांत में विद्यार्थियों को अभी प्रेरित करने पर जोर दिया है उसके लिए अध्यापक दंड, प्रशंसा, पुरस्कार आदि की सहायता ले सकता है।
10.वैज्ञानिक आधार- विश्व में कई वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य प्रयास और भूल के सिद्धांत पर काम करते हैं।
प्रयास और भूल सिद्धांत की सीमाएं
1. इस सिद्धांत के अनुसार हर अधिगम संभव नहीं है कई बार बहुत प्रयास करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती।
2. इस विधि से स्थान नियंत्रण बहुत कम होता है।
3. इस विधि में समय और शक्ति बहुत लगती है और व्यर्थ की कोशिशों से समय बेकार जाता है।
4. यह एक धीमी गति की प्रक्रिया है इसी कारण प्रतिभाशाली बच्चे इसे कम पसंद करते हैं और मंद बुद्धि वाले बालक अधिक पसंद करते हैं।
5. यह एक यांत्रिक विधि है इस विधि से बुद्धि का प्रयोग नहीं किया जाता।
निष्कर्ष
प्रयास और भूल सिद्धांत में दोष होने के बावजूद इस सिद्धांत का बहुत महत्व है इस सिद्धांत में थार्नडाईक ने असफलता को सफलता में बदलने का प्रयास किया है। असफल क्रियाओं में से सही अनुक्रिया का चुनाव किया जाता है। जिससे मनुष्य हर समस्या का समाधान निकाल सकता है।