बाल विकास की अवस्थाएँ, प्रकार, चरण, निष्कर्ष, महत्व, सिद्धांत, बाल विकास का चार्ट


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BTC/DELED

SEMESTER-1ST

विषय(Subject):- बाल विकास एवं सीखने की प्रक्रिया 

पाठ (Chapter):- 2  

पाठ नाम (Chapter name):- बाल विकास की अवस्थाएँ


बाल विकास का अर्थ परिभाषा(Meaning and definition of Child Development)

विकास शब्द हमारे लिये नया शब्द नहीं है।  यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन प्रयत्न चलती रहती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत बालक के विकास की शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था का विकास तथा बाल विकास की अवस्थाओं में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में यदि कहा जाए तो बालविकास के अंतर्गत सभी प्रकार के परिवर्तन  जैसे शारीरिक परिवर्तन, मानशिक परिवर्तन, संवेगात्मक परिवर्तन आते है। और यह परिवर्तन विकास की अवस्था मे कब और क्यों होते है। इन साभि का अध्ययन ही बाल विकास कहलाता हैं।


बाल विकास की परिभाषाएँ (Definition of child development in Hindi)

वॉन डेन डेल के अनुसार बाल विकास की परिभाषा 
“विकास से तात्पर्य गुणवत्ता परिवर्तन से है।”
एण्डरसन के शब्दों में के अनुसार बाल विकास की परिभाषा 
“विकास में केवल कुछ इंचो की वृद्धि एवं कुछ योगयताओं में सुधार ही निहित नहीं है वरन इसमें अनेक संरचनाओं तथा कार्यों के एकीकरण होने की प्रक्रिया निहित है। “
जेम्स ड्रेवर के अनुसार बाल विकास की परिभाषा
“बाल मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जो प्राणी विकास का अध्ययन जन्म से परिपक्वास्था तक करती है।”
हरलाक के अनुसार बाल विकास की परिभाषा
“विकास की सीमा अभिवृद्धि तक ही नहीं है।अपितु इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की और परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है।विकास के परिणाम स्वरूप व्यक्ति में अनेक नवीन विशेषताएं एवं नवीन योग्यताएं स्पष्ट होती हैं।”
इंग्लिश व इंग्लिश के अनुसार बाल विकास की परिभाषा 
“विकास प्राणी के शरीर में एक लम्बे समय तक होने वाले निरन्तर परिवर्तन का एक क्रम है।  ये विशेषतः ऐसे परिवर्तन है जिनके कारण जन्म से लेकर परिपक्वता और मृत्यु तक प्राणी में स्थायी परिवर्तन होते है। “
मुनरो के अनुसार बाल विकास की परिभाषा
“परिवर्तन श्रंखला की उस अवस्था को जिसमें बालक प्रौढ़ावस्था से लेकर प्राण अवस्था तक गुजरता है ,विकास कहा जाता है।”
रिसन एवं अन्य के अनुसार बाल मनोविज्ञान की परिभाषा
“बाल मनोविज्ञान का प्रत्यक्ष सम्बन्ध बाल व्यवहार से है।”
क्रो एंड क्रो के अनुसार बाल विकास की परिभाषा
“बाल मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो व्यक्ति के विकास का वैज्ञानिक अध्ययन गर्भकाल से किशोरावस्था तक करता है।”
हरलॉक के अनुसार बाल मनोविज्ञान की परिभाषा
“विकास की सीमा अभिवृद्धि तक ही नहीं है अपित इसमें प्रौढावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है।”
स्किनर के अनुसार बाल विकास की परिभाषा 
“बाल मनोविज्ञान, बालक के व्यवहार एवं अनुभव का विज्ञान है।”

बाल विकास की अवस्थाएँ ( विकास की कौन कौन सी अवस्था है?)
अगर बात करे कि बाल विकास को कितने भागों में बांटा गया? थवा बालक बालिकाओं के विकास की कितनी अवस्थाएं हैं? इस स्थित में हम कह सकते है बाल विकास की तीन अवस्थाएँ होती है। 
  1. शैशवावस्था ( जन्म से 5 वर्ष तक) (विकास की प्रथम अवस्था क्या है?शैशवावस्था)
  2. बाल्यावस्था ( 5-12 वर्षों तक)
  3. किशोरावस्था (12-18 वर्षों तक)
हरलॉक के अनुसार विकास की अवस्थाएं
  • गर्भावस्था – गर्भधारण से जन्म तक का काल। 
  • नवजात अवस्था – जन्म से 14 दिन तक। 
  • शैशवावस्था – 14 दिन  से 2  वर्ष तक का काल 
  • बाल्यावस्था – 2  वर्ष से 11  वर्ष 
  • किशोरावस्था – 11  वर्ष से 21 वर्ष  
रॉस  के अनुसार विकास की अवस्थाएं 
  • शैशवावस्था -1 से 3 वर्ष तक का काल
  • पूर्व बाल्यावस्था -3 वर्ष से 6 वर्ष
  • उत्तर बाल्यावस्था -6 वर्ष से 12 वर्ष 
  • किशोरावस्था -12 वर्ष से 18 वर्ष 
जोन्स  के अनुसार विकास की अवस्थाएं 
  • शैशवावस्था : जन्म से 5 वर्ष तक 
  • बाल्यावस्था : 5-12 वर्ष 
  • किशोरावस्था :12-18 वर्ष  
शैले  के अनुसार विकास की अवस्थाएं
  • शैशवावस्था-0 से 5 वर्ष तक
  • बाल्यावस्था -6 से 12 वर्ष तक
  • किशोरावस्था-13 से 18 वर्ष तक 
कॉलसनिक के अनुसार विकास की अवस्थाएं
  • भ्रूणावस्था-जन्म से पहले की अवस्था
  • नव शैशवावस्था-जन्म से 4 सप्ताह तक
  • आरम्भिक अवस्था-5 माह से 15 माह तक
  • उत्तर शैशवावस्था-15 माह से 30 माह तक
  • पूर्व बाल्यावस्था -2 से 5 वर्ष तक
  • मध्य बाल्यावस्था -6 से 9 वर्ष तक
  • उत्तर बाल्यावस्था– 9 से 12 वर्ष तक
शैशवावस्था से आप क्या समझते हैं?

BTC/DELED. UPTET, CTET तथा अन्य होने वाले एग्जाम में यह प्रश्न पूँछा जाता है कि शैशवावस्था की आयु कितनी होती है?  इस सम्बन्ध में अलग-अलग वैज्ञानिको की अलग -अलग राय है।  इन सभी की रायों में जोन्स तथा शैले के अनुसार शैशवावस्था की आयु (०-5)  वर्ष तक होती है। 
शैशवावस्था का अर्थ क्या है
शैशवावस्था विकास की प्रथम अवस्था होती है जिसमे शिशु का शारीरिक विकास जन्म से पूर्व गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है। जन्म के बाद शैशवावस्था में दो सोपान पाये जाते है, जिसमे पहला सोपान जन्म से 3 वर्ष- विकास के ,दूसरा सोपान 3 वर्ष से 5 वर्ष। 
  1. यह जीवन की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। 
  2. शैशवावस्था में प्रथम तीन वर्ष विकास काल के होते है। 
  3. शैशवावस्था के अन्तिम 3 वर्षों में बच्चा मजबूती प्राप्त करता है। 

शैशवावस्था में विकास
शैशवावस्था में विकास तीन चरणों में होता है। 
  1. शैशवावस्था में शारीरिक विकास 
  2. शैशवावस्था में मानसिक विकास 
  3. शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास 

शैशवावस्था में शारीरिक विकास 
भार-
  • जन्म के समय और पूरी अवस्था में बालक का भार बालिका से अधिक 
  • जन्म के समय बालक का भार-7. 5 पॉन्ड 
  • जन्म के समय बालिका का भार-7.13 पॉन्ड 
  • 6 माह में शिशु का भार दो गुणा हो जाता है तथा एक वर्ष में तिगुना 
लम्बई 
  • जन्म के समय शिशु की औसत लम्बाई 50 सेमी 
  • एक वर्ष बाद 67-70 सेमी 
  • दो वर्ष के अन्त तक 77-82 सेमी 
  • 6 वर्ष तक 100-110 सेमी 
  • 3 वर्ष तक विकास की गति अतियंत तीव्र होती है 
सिर व मस्तिष्क 
  •  शैशवावस्था में नवजात शिशु की लम्बाई शरीर के कुल लम्बाई का 1/4 होती है 
हड्डियाँ-
  • जन्म के समय हड्डियों की संख्या-270
मांशपेशियां
  • शैशवावस्था में मांसपेशियां कुल भार की 23%
  • बाद में यह बढ़ कर 27% 
अन्य भाग 
  • छटे माह में दूध के दाँत निकलना प्रारम्भ होते है। 
  • दाँतों के निकलते समय सबसे पहले अगले दाँत निकलते है। 
  • एक वर्ष में इनकी संख्या 8 हो जाती है। 
  • 4 वर्ष में दूध के सभी दाँत गिर जाते है। 
शैशवावस्था में मानसिक विकास 
जन्म से तीन माह तक-हाथ पैर हिलना, भूख लगने पर रोना, हिचकी लेना, दूध पीना, चौकना 
चौथे से 6 माह तक
  • व्यंजनों की ध्वनि करना 
  • वस्तुओं को पकड़ने का प्रयास करना 
  • सुनी आवाज का अनुकरण करना 
7 से 9 वे माह -घुटने के भल चलने और सहारे से खड़ा होना। 
10 माह से 1 वर्ष तक-बोलने का अनुकरण करना 
दूसरे वर्ष से-शब्द व वाक्य बोलने की शुरुआत करना 
तीसरे वर्ष से-नाम बताना, शरीर के अंग पहचानना, कहानी सुनना। 
चौथे वर्ष से- 4-5 तक गिनती लिखना, अक्षर लिखना 
पाँचवे वर्ष-
  • हल्की भारी वस्तु में अन्तर करना 
  • रंग को पहचानना 
  • अपना नाम लिखना 
शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास 

 आयु माह 

संवेग प्रकार  

 जन्म के समय 

उत्तेजना  

 1 माह 

पीड़ा-आनन्द  

 3 माह 

क्रोध  

 4 माह 

परेशानी  

 5 माह 

भय 

 10 माह 

प्रेम  

 15 माह 

ईर्ष्या  

 24 माह 

 खुशी प्रसन्नता  

  • शैशवावस्था में मुख्यतः 3 संवेगों का विकास होता है – भय, क्रोध, प्रेम 
  • शैशवावस्था के अन्तिम चरणों में वातावरण ,संवेगात्मक विकास को प्रभावित करता है। 
बाल्यावस्था में विकास 
6 से 12 वर्ष के बीच की अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है।  जिसमे 6-9 वर्ष में तीव्रता से शरीर विकास , 9-12 वर्ष के बीच में शरीर विकास मन्द हप्ता है। 
बाल्यावस्था का विकास को तीन चरणों में होता है। 
  1. बाल्यावस्था में शारीरिक विकास 
  2. बाल्यावस्था में मानसिक विकास 
  3. बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास 
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास 
भार-
6-9 वर्ष तक बालकों का भार बालिकाओं से अधिक होता है। 
बाद में बालिकाओं का भार अधिक 
लम्बाई 
विकास की इस अवस्था में लम्बाई में काम वृद्धि होती है।  कुल मिलाकर सभी वर्षों में 2 से 3 इंच तक ही वृद्धि होती है। 
हड्डियाँ 
  • प्रथम 4-5 वर्षों में हड्डियों की संख्या में वृद्धि होती है। 
  • 10-12 वर्ष में हड्डियों का दृढ़करण होता है। 
दांत 
  • 4 वर्ष तक दूध के सभी दांत गिर जाते है। 
  • 12-13 वर्ष तक सभी स्थायी दांत निकल आते है। 
मासपेशियाँ 
  • 8 वर्ष तक मांसपेशियों का कुल भार 27% हो जाता है। 
  • बालिकाओं की मासपेंसियों में अधिक विकास होता है।  
बाल्यावस्था में मानसिक विकास 
  • बालक में मानसिक विकास निम्न प्रकार होता है। 
  • बालक में समझने,स्मरण करने, विचार करने, समस्या समाधान करने, तर्क चिन्तन व निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो जाता है 
  • बालक छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन करने लगता है। 
  • बालक में वस्तुओं को संचित करने की क्षमता का विकास होने लगता है। 
  • समूह में रहना तथा कार्य करना, अनुकरण, सहानुभूति व सहयोग का विकास 
  • बालक पढ़ने लिखने में अधिक रूचि लेने लगता है। 
बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास 
  • बालक में प्रत्येक क्रिया के प्रति प्रेम, ईर्ष्या, घृणा, व प्रतिस्पर्धा की भावना प्रकट करने का विकास होता है। 
  • बालक झूठ बोलकर अपनेआप को बचाने की कोशिश करता है। 
  • बालक अन्तिम चरणों में संवेगों पर निर्णय करना सीख जाता है। 

बालक का किशोरवस्था में विकास 
  • 12-18 वर्षों के बीच के समयकाल को किशोरावस्था कहा जाता है।  किशोर अवस्था से सम्बन्धित निम्न लिखित बिन्दु है। 
  • किशोरावस्था जीवन काल का सबसे कठिन काल कहा जाता है। 
  • इस अवस्था को परिवर्तन की अवस्था कहा जाता है। 
  • बालक तथा बालिकाओं का विकास तीव्र गति से होता है। 
  1. बालको में तीव्र वृद्धि-14 वर्ष की आयु तक 
  2. बालिकाओं में तीव्र वृद्धि -16 वर्ष की आयु तक 
  • इस अवस्थाओं में बालको का भार बालिकाओं से अधिक होता है। 
किशोरावस्था के विकास को तीन चरणों में बाँटा गया है। 
  1. किशोरावस्था में शारीरिक विकास 
  2. किशोरावस्था में मानसिक विकास 
  3. किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास 
किशोरावस्था में शारीरिक विकास 
  • आकर एवं भार – बालक की लम्बाई 14 वर्ष की आयु तक बढ़ती है जबी बालिका की लम्बाई 16 वर्ष की आयु तक 
  • सर व मस्तिष्क-15-16 वर्ष तक सर का पूर्ण विकास हो जाता है तथा मस्तिष्क का भार 1200-1400 ग्राम तक होता है। 
  • हड्डियाँ-किशोरावस्था में हड्डियाँ पूर्ण रूप से मजबूत हो जाती है। कुछ छोटी-छोटी हड्डियाँ आपस में जुड़ जाती है। 
  • विभिन्न ग्रंथियों का विकास– किशोरावस्था में परिवर्तन का आधार अन्तः स्रावी ग्रंथियाँ, पिट्यूटरी, थायराइड, एड्रिनल ग्रांटज़ियाँ होती है। 
किशोरावस्था में मानसिक विकास 
  • किशोरावस्था में मानसिक विकास पूरी तरह से हो जाता है। 
  • स्मरण शक्ति में स्थायित्व आ जाता है। 
  • किशोरावस्था में कल्पनाओं की बहुलता होती हैअर्थात बालक अथवा बालिका दिवास्वप्न (Daydreaming) होते है। 
  • शब्द भण्डारण में वृद्धि होती है। 
  • रुचिओं में तीव्र विकास होता है। 
किशोर आस्था में संवेगात्मक विकास 
बालक किशोरावस्था में आते-आते उसमे संवेगो का विकास होने लगता है।  इस अवस्था में बालक अथवा बालिकाओं में द्वंद्वात्मक परिस्थितियों का जन्म होता हैक्योंकि इस अवस्था में बालक अथवा बालिका न तो बालक होते है और न ह प्रौढ़। 
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