शिक्षण क्या है अर्थ,परिभाषा ,शिक्षण विधियाँ उनके प्रकार, प्रवर्तक अथवा जनक/ मनोविज्ञान की विधियाँ, सिद्धान्त, BTC,DELED, TET,STET, EXAM
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प्रमुख बिन्दु शिक्षण क्या है? शिक्षण का व्यापक अर्थ शिक्षण की परिभाषाएँ शिक्षण विधियाँ
शिक्षण विधियाँ और उनके प्रतिपादक
|
शिक्षण क्या है?
शिक्षण से तात्पर्य बालक
को ऐसे अवसर प्रदान करना जिसमे बालक समस्या का समाधान स्वम
निकाल सके।शिक्षण शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी
भाषा के Teaching शब्द से हुयी है
जो की एक सामाजिक
प्रक्रिया है, जिसका तात्पर्य है– सीखना। जो की एक
त्रियामी प्रक्रिया है, जिसमें पाठ्यक्रम के माध्यम से
शिक्षक और छात्र अपने
स्वरूप को प्राप्त करते
हैं। प्राचीन काल मे शिक्षा, शिक्षक–केन्द्रित
थी अर्थात शिक्षक अपने अनुसार बालको को शिक्षा देता
था इसमे बालक के रुचियों एवं
अभिरुचियों को ध्यान मे
नहीं रखा जाता था। लेकिन वर्तमान समय मे शिक्षा बालक–केन्द्रित हो गई है.
अर्थात वर्तमान समय मे बालक के
रुचियों एवं अभिरुचियों के अनुसार शिक्षा
दी जाती है। वर्तमान में शिक्षण छात्र केन्द्रित होता है।
शिक्षण का व्यापक अर्थ
शिक्षण के व्यापक अर्थ
से तात्पर्य उससे है जिसमे वयक्ति
अपने पूरे जीवन मे सीखता है।
अर्थात शिक्षण का व्यापक अर्थ
वह है, जिसमें व्यक्ति औपचारिक,अनौपचारिक एवं निरौपचारिक साधनो के द्वारा सीखता
है। इसमें शिक्षार्थी जन्म से लेकर मृत्यु
तक अपनी समस्त शक्तियों का उत्तरोत्तर विकास
करता रहता है।
मैन के अनुसार शिक्षण
–शिक्षण बताना नहीं प्रशिक्षण है।
रायबर्न के अनुसार शिक्षण–शिक्षण एक सम्बन्ध है
जो विद्यार्थी को उसकी शक्तियों
के विकास में सहायता देता है।
महात्मा गांधी के अनुसार–हस्तलिपि
का खराब होना अधूरी पढ़ाई की निशानी है।
जॉन एडम्स के अनुसार शिक्षण
– शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया
है जिसमे अध्यापक एवं छात्र है।
बर्टन के अनुसार शिक्षण–शिक्षण सीखने के लिये प्रेरणा
पथ–प्रदर्शन एवं प्रोत्साहन है।
बैन के अनुसार शिक्षण
–शिक्षण कथन नहीं प्रशिक्षण है।
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वह ढंग अथवा तरीका जिससे शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। जो निम्नलिखित है।
- भाषा शिक्षण विधियाँ
- गद्य शिक्षण की विधियाँ
- पद्य शिक्षण की विधियाँ
- रचना शिक्षण की विधियाँ
Methods Pdf)
- आगमन विधि
- निगमन विधि
- अर्थ–बोध विधि
- प्रश्नोत्तर विधि
- व्युत्प्ति विधि
- व्याख्यान विधि
- टीका विधि
- प्रसंग विधि
- गीत विधि
- अभिनय विधि
- अर्थ–बोध विधि
- रसास्वादन विधि
- व्याख्यान विधि
- प्रश्नोत्तर विधि
- व्यास विधि
- तुलनात्मक विधि
- समीक्षा विधि
- प्रश्नोत्तर विधि
- चित्र वर्णन विधि
- अनुकरण विधि
- लेख विधि
- भाषा शिक्षण यंत्र विधि
- अनुकरणात्मक विधि
- रुपरेखा विधि
- उदबोधन विधि
- प्रवचन विधि
- परिचर्चा विधि
- मन्त्रणा विधि
- विमर्श विधि
- निर्देश विधि
- समवाय विधि
- विश्लेषण विधि
उनके जनक
आगमन विधि के प्रवर्तक–अरस्तु/बेकन
- ज्ञात से अज्ञात की
और - स्थूल से शूक्ष्म की
और - विशिष्ट से सामान्य की
और
- उदाहरण
- विश्लेषण अथवा निरीक्षण
- निष्कर्ष अथवा नियमीकरण
- अभ्यास अथवा परीक्षण
- पहले उदाहरण देते है फिर उन्ही
उदाहरणों के आधार पर
सामान्यीकरण किया जाता है। - उदाहरणों द्वारा नये नियमों की स्थापना की
जाती है . - नवीन प्रश्नों को हल किया
जाता है। - अर्जित ज्ञान स्थायी नहीं होता है।
- आगमन विधि में उदाहरण से नियम की
और चलते है। - यह विधि व्याकरण
को पढ़ाने की सरल विधि
है इसलिए इसे
व्याकरण शिक्षण की वैज्ञानिक विधि”भी कहा जाता
है। - अर्जित ज्ञान स्थाई होता है
व्याकरण तथा गणित विषय में किया जाता है।
तथ्य
- तत्वों का परीक्षण/ विश्लेषण
कर सिद्धांतों का निर्माण किया
जाता है। - तथ्यों को आधार बनाया
या उदाहरणों का परीक्षण कर
नियम बनाए जाते हैं। - विषयों को उदाहरणों द्वारा
समझा कर नियम नहीं
निकाले जा सकने के
कारण छोटी कक्षाओं के बालक इस
विधि को नहीं कर
सकते हैं। - इस विधि को
व्याकरण शिक्षण की
वैज्ञानिक विधि के नाम से
भी जाना जाता है। - इस विधि के
द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान स्थाई होता है।
अन्य नाम– सूत्र प्रणाली एवं संश्लेषण प्रणाली
निगमन विधि में सर्वप्रथम विद्यार्थियों को नियमों का
ज्ञान दे दिया जाता
है और
बाद में उदाहरण देकर उन नियमों को
समझाया जाता है।
निगमन विधि के प्रवर्तक–अरस्तु/प्लेटो
निगमन विधि के सिद्धान्त
- अज्ञात से ज्ञात की
और - शूक्ष्म से स्थूल की
और - सामान्य से विशिष्ट की
और
- नियम
- विश्लेषण
- उदाहरण
- निगमन विधि आगमन विधि के ठीक विपरीत
कार्य करती है। - इस विधि में
पहले उदाहरण देते है फिर उदाहरण
के आधार पर निष्कर्ष निकालते
है। - यह विधि उच्च
कक्षाओं में पढ़ाई के लिये उपयोगी
है। - सूत्र का प्रयोग करते
है। - यह विधि शिक्षक
केंद्रित होने से शिक्षक ही
सारे नियम सिखाते हैं। - पहले नियम बताते है फिर उदाहरण
देते है। - नवीन समस्याओं का समाधान
विधि का प्रयोग गणित
और विज्ञान शिक्षण में किया जाता है।
- इस विधि में
नियमों एवं सिद्धांतों को रटना पड़ता
है या नियमों को
स्वीकार करना पड़ता है जिसके कारण
विद्यार्थी कक्षा में रुचि नहीं ले पाते हैं। - इस विधि से
समय की बचत होने
से शिक्षण हेतु बहुत उपयोगी होती है। - नियमो को रटने के
कारण प्राप्त ज्ञान हमेशा अस्थाई होता है। - निगमन विधि द्वारा बालकों की रचनात्मक ज्ञान
का विकास नहीं हो पाता है
जिससे वे स्वयं द्वारा
नहीं सीख पाते हैं अतः कक्षाओं में नीरसता आ जाती है।
निगमन प्रणाली के दोष
- निगमन प्रणाली अरुचिकर होती है क्योंकि यह
रटने पर जोर देती
है।
विश्लेषण विधि
विश्लेषण विधि का दूसरा नाम–तार्किक प्रतिपादन विधि
टुकङो में रख कर समस्या
का हल निकालते है।
विश्लेषण विधि के सिद्धान्त
- ज्ञात से अज्ञात की
और
- ज्ञान का विखण्डन किया
जाता है। - विश्लेषण विधि वृत की परिधि तथा
व्यास में सम्बन्ध बताती है। - विश्लेषण विधि से अर्जित किया
गया ज्ञान स्थायी होता है। - विश्लेषण विधि में सूखी घास से तिनका निकालना
नहीं पड़ता बल्कि तिनका स्वम घास से बाहर निकलता
है। - विश्लेषण विधि का प्रयोग –गणित
विषय के शिक्षण में
होता है।
संश्लेषण विधि
अन्य नाम –शिक्षण की मनोवैज्ञानिक विधि
विश्लेषण विधि में विभिन्न समस्याओं को जोड़कर बताते
है।
- ज्ञात से अज्ञात की
और
- इस विधि में
खण्डो में प्राप्त ज्ञान को जोड़कर समझाया
जाता है। - संश्लेषण विधि में सूखी घास से तिनका निकाला
जाता है स्वम नहीं
निकलता है।
गणित में
ह्यूरिस्टिक विधि
अन्य नाम–अन्वेषण विधि/खोज विधि
ह्यूरिस्टिक शब्द ग्रीक भाषा के Heurisco से बना है
जिसका अर्थ है “मै खोजता हूँ“
- बालक समस्या का समाधान स्वम
निकालता है। - ह्यूरिस्टिक विधि करके सीखों सिद्धान्त पर आधारित होती
है।
प्रश्नोत्तर विधि
प्रश्नोत्तर विधि का अन्य नाम–
सुकराती विधि
प्रश्नोत्तर विधि के प्रवर्तक–सुकरात
प्रश्न यद्यपि एक युक्ति है
फिर भी सुकरात ने
प्रश्नोत्तर को एक विधि
के रूप में प्रयोग करके इसे अधिक महत्व प्रदान किया है। इसी से इसे सुकराती
विधि कहते हैं।
विधि में प्रश्नकर्ता से ही प्रश्न
किए जाते हैं और उसके उत्तरों
के आधार पर उसी से
प्रश्न करते–करते अपेक्षित उत्तर निकलवा लिया जाता है।
काउलर के अनुसार– “शिक्षण
मुख्य रूप से प्रश्नों के
द्वारा होना चाहिए। “
महत्व
- पूर्व ज्ञान का पता लगाकर
आगे आने वाले ज्ञान से उसका सम्बन्ध
जोड़ने के लिए। - यह ज्ञात करने
के लिए कि बच्चे ने
पढ़े हुए पाठ से कितना ज्ञान
अर्जित किया है। - बच्चों की समस्याओं को
जानने और उनके निवारण
हेतु।
- प्रश्न की भाषा स्पष्ट
व निश्चित होनी चाहिए जिससे छात्र प्रश्न को भलीभांति समझ
सकें। - प्रश्नों की रचना बालक
के व्यावहारिक भाषा के अनुसार की
जानी चाहिए। - प्रश्न उद्देश्य के साथ सम्बंधित
होना चाहिए। - प्रश्नों का क्रम तर्कसंगत
होना चाहिए।
व्याकरण विधि के महत्वपूर्ण तथ्य
- इस विधि में
मुख्य रूप से व्याकरण के
नियमों का ज्ञान कराया
जाता है। - व्याकरण पद्धति में भी” आगमन निगमन” प्रणाली काम में ली जाती है।
- जब अध्यापक द्वारा
बताए गए व्याकरण के
नियमों को छात्रों द्वारा
रख लिया जाता है तब यह
निगमन प्रणाली कहलाती है आगमन प्रणाली
के अंतर्गत नियमों द्वारा विद्यार्थी अनुसरण अपने
स्वयं के उदाहरण व
सिद्धांत बनाते हैं। - यह पद्धति छात्र
स्वयं सीखते हैं। - व्याकरण विधि द्वारा छात्रों को ध्वनियो
का ज्ञान , शुद्ध वर्तनीयो के ज्ञान के
साथ–साथ विराम व कारक
चिन्ह का भी ज्ञान
होता है। - व्याकरण के ज्ञान से
भाषा में कम अशुद्धियां होती
हैं।
- इस विधि में
व्याकरण के नियमों को
अत्यधिक महत्व दिया जाता है जिसके कारण
भाषा का प्राकृतिक रूप
से विकास नहीं हो पाता है। - इस विधि में
नियमों का अत्यधिक अभ्यास
होने से कक्षा में
नीरसता आती है। - यह विधि ज्यादा
काम में नहीं ली जाती है। - इस विधि में
भाषा तो अनुकरण से
सीख ली जाती है
परंतु व्याकरण को हमेशा नियम
द्वारा ही सीखा जा
सकता है।
method)
अनुकरण विधि का प्रयोग
- अनुकरण विधि का प्रयोग सामान्यतः
भाषण एवं वाचन लेखन विकास होता है। - विद्यार्थि अपने शिक्षक का अनुकरण कर
अपने भाषण के कौशल का
विकास करते है इस प्रक्रिया
द्वारा विद्यार्थी के व्याख्यान में
स्पष्टता आती है। - इस विधि द्वारा
एक बालक पढ़ना, लिखना, अच्छे से उच्चारण करना
एवं नवीन रचनाएं करना सीखता है।
अनुकरण विधि की कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- अनुकरण विधि की कुछ महत्वपूर्ण
बिंदु इस प्रकार है - यह बाल केंद्रित
शिक्षण विधि है, यह विधि करके
सीखने पर बल देती
है। - यह विधि मुख्य
रूप से प्राथमिक स्तर
के विद्यार्थियों हेतु उपयोगी है। - इस विधि का
मुख्य उद्देश्य बालक को आत्मनिर्भर बना
कर सही अर्थ में स्वतंत्र बनाना है। - बालक को के उच्चारण
हेतु यह बिधि उपयोगी
है। - बुनियादी शिक्षा में अनुकरण विधि का उपयोग किया
जाता है।
शिक्षा की मांटेसरी पद्धति
का नाम इटली की एक चिकित्साक
एवं शिक्षा शास्त्री मारिया मांटेसरी के नाम पर
है।
इस विधि का
प्रयोग ढाई वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों
हेतु विद्यालयों में प्रयोग में ली जाने वाली
पद्धति है।
मारिया मांटेसरी विधि का विकास डॉक्टर
मारिया द्वारा रूस विश्वविद्यालय
में मंदबुद्धि बालको की चिकित्सा हेतु
तथा उनकी शिक्षा हेतु किया गया जो कुछ समय
पश्चात सामान्य बुद्धि के बालकों हेतु
शिक्षा में उपयोग में लाई गई। इनका मानना था कि शिक्षा
का मूल उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास
होना चाहिए।
प्रत्यक्ष विधि के अन्य नाम–
सुगम पद्धति,प्राकृतिक विधि, सम्रात विधि, निर्बाध विधि
- इस विधि में
बालक को बिना व्याकरण
के नियमों का ज्ञान कराएं
भाषा सिखाई जाती है। - इस विधिमें मातृभाषा
की सहायता नन लेकर विद्यार्थी
को सीधे बार–बार मौखिक एवं लिखित अभ्यास द्वारा सीधे नई भाषा सिखाई
जाती है। - इस विधि का
निर्माण व्याकरण अनुवाद विधि के दोषों को
दूर करने हेतु किया जाता है। - इस विधि को
वार्तालाप के माध्यम से
अधिक से अधिक सीखने
पर बल दिया जाता
है जिससे बालक प्राकृतिक रूप से सीख सकें। - प्रत्यक्ष विधि में श्रव्य दृश्य सामग्री का प्रयोग किया
जाता है। जिससे प्राथमिक कक्षाओं हेतु यह विधि अत्यधिक
उपयोगी है। - इस विधि में
व्याकरण का ज्ञान अप्रत्यक्ष
रूप से दिया जाता
है। - प्रत्यक्ष विधि मौखिक अभ्यास पर अधिक जोर
देती है। - यह नवीन भाषा
को सिखाने का माध्यम होती
है। - प्रत्यक्ष विधि में व्यवहारिक पक्ष पहले और सैद्धांतिक पक्ष
बाद में आयोजित होता है। - प्रत्यक्ष विधि को मौखिक वार्तालाप
विधि के नाम से
भी जाना जाता है।
प्रत्यक्ष विधि का मुख्य उद्देश्य
बालक दूसरी भाषा का ज्ञान अनुकरण
द्वारा एवं पृथक भाषा की तरह सीखे।
- इस विधि में
अधिक से अधिक सुनने
व बोलने पर बल दिया
जाता है परन्तु लेखन
और वाचन की अवहेलना की
जाती है। - इस विधि में
छात्रों को शब्दावली का
बहुत ही सीमित ज्ञान
हो पाता है।
method)
समस्या समाधान विधि का सिद्धान्त–यह
विधि “करके सीखने” किस सिद्धांत पर कार्य करती
है।
समस्या समाधान विधि की परिभाषा
वुड के अनुसार– ” समस्या
विधि निर्देशन की वह विधि
है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को
चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के द्वारा प्रोत्साहित
किया जाता है जिसका समाधान
करना आवश्यक है।”
समस्या समाधान विधि के महत्वपूर्ण तथ्य
- समस्या समाधान विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान हमेशा स्थाई होता है।
- यह विधि विद्यार्थियों
को समस्या को स्वयं हल
करना सिखाती है। - यह एक मनोवैज्ञानिक
एवं सक्रिय विधि है। - इस विधि में
विद्यार्थी क्रियाशील रहकर कार्य करते हैं। - इस विधि द्वारा
छात्रों में समस्या को हल करने
की क्षमता का विकास होता
है। - इस विधि से
छात्रों में चिंतन एवं तर्कशक्ति का भी विकास
होता है। - इस विधि द्वारा
विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता
है। - इस विधि द्वारा
छात्रों में ऐसे कौशलों का विकास होता
है जिनके द्वारा उन्हें जीवन की सभी समस्याओं
का समाधान करना आ जाता है।
- समस्या विधि का चयन
- समस्या का प्रस्तुतीकरण
- उसे हल करने हेतु
तथ्यों का एकत्रीकरण - विश्लेषण
- मूल्यांकन
समस्या समाधान विधि की विशेषता
- यह विधि जीवन
को बेहतर/ अच्छे ढंग से जीने का
एक नजरिया देती है। - यह विधि विद्यार्थियों
को समस्या को स्वयं हल
करना सिखाती है।
- समस्या समाधान विधि बहुत अधिक समय लेती है।
- इस विधि में
कुशल अध्यापकों की आवश्यकता होती
है। - इस विधि का
प्रयोग छोटी कक्षाओं एवं प्राथमिक कक्षाओं हेतु नहीं किया जा सकता है। - समस्या समाधान विधि द्वारा निकले हुए परिणाम संतोषजनक हो यह आवश्यक
नहीं है। - इस विधि द्वारा
संपूर्ण पाठ्यक्रम को पूरा नहीं
कराया जा सकता है
क्योंकि विद्यार्थियों को जिन जिन
प्रकरणों में समस्या होती है वे उन
प्रकरणों से ही संबंधित समस्याओं का समाधान करते
हैं।
ड़ूयूवी के शिष्य विलियम
किलपैट्रिक द्वारा विकसित की गई।
प्रयोजन विधि की कुछ महत्वपूर्ण
परिभाषाएं
स्टीवेंसन के अनुसार– “योजना
एक समस्या मूलक कार्य है जिसे प्राकृतिक
स्थिति में पूरा किया जाता है।”
किलपैट्रिक के अनुसार– “ प्रोजेक्ट
एक वह उद्देश्य कार्य
है जिससे लगन के साथ सामाजिक
वातावरण में किया जाता है।”
बैलार्ड के अनुसार– “ प्रोजेक्ट
वास्तविक जीवन का एक छोटा
सा अंश है जिसे
विद्यालय में संपादित किया जाता है।”
प्रयोजन विधि विधि के महत्वपूर्ण तथ्य
- इस विधि द्वारा
विद्यार्थी स्वयं अपनी रुचि से अपने पाठ्यक्रम
में रामजस स्थापित करते हुए सीखता है। - यह विधि जॉन
डी.वी की अवधारणा
पर आधारित है। परन्तु
इस विधि की विचारधारा को
विकसित करने का श्रेय उनके
शिष्य” किलपैट्रिक” को
जाता है।
प्रोजेक्ट विधि (Project method)
प्रोजेक्ट विधि में विद्यार्थी अपने अनुभवों के आधार पर
दिए गये प्रोजेक्ट पर कार्य कर
उससे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान निकलते
है।
- कार्यक्रम योजना बनाना
- क्रियान्वयन करना
- मार्गदर्शन करना
- मूल्यांकन करना
- प्रोजेक्ट विधि एक ”बाल केंद्रित शिक्षा” है ।
- इस विधि में
विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से कार्य कर
अपनी समस्याओं का हल अपने
स्वयं के विचारों के
आधार पर करता है। - इस विधि के
द्वारा विद्यार्थी अपने अनुभवों के आधार पर
कार्य करता है क्योंकि अनुभव
द्वारा सीखे गए ज्ञान को
विद्यार्थी कभी भी भूलता नहीं
है। - इस विधि के
अनुसार विद्यार्थी अपनी समस्या का हल स्वाभाविक
रूप से खोजने की
कोशिश करता है और उस
समस्या का हल भी
करता है। - इस विधि द्वारा
सभी विषयों का ज्ञान प्रदान
किया जा सकता है। - इस विधि में
सर्वप्रथम विद्यार्थियों को अपने उद्देश्य
को स्पष्ट कर उस उद्देश्य
को ध्यान में रखते हुए अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करते
हैं।
प्रोजेक्ट विधि की विशेषताएँ
- इस विधि द्वारा
बालक व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। - विद्यार्थी निरंतर
क्रियाशील रहते हैं। - विद्यार्थियों में चिंतन शक्ति का विकास होता
है। - विद्यार्थी रुचि के अनुसार कार्य
करना भी सीखते हैं।
- यह विधि बहुत
अधिक समय लेती है। - इस विधि द्वारा
समय पर पाठ्यक्रम पूरा
नहीं हो पाता है। - संसाधनों की कमी रहती
है जिसके परिणाम स्वरुप यह विधि कार्य
नहीं कर पाती है।
प्रोजेक्ट विधि की प्रक्रिया
- समस्या का पता लगाना
- समस्याओं में से एक का
चुनाव करना - रूपरेखा बनाना हल करने हेतु
- विधि का प्रयोग करना
- विश्लेषण करना
- मूल्यांकन
इकाई विधि का जन्म –इकाई
विधि का जन्म ”GESTALT” की
धारणा के आधार पर
हुआ।
इस विधि के
प्रवर्तक– अमेरिकन शिक्षा शास्त्री ”मॉरीसन”
इकाई विधि के सिद्धान्त
- यह विधि ”पूर्ण
से अंश” की ओर कार्य
करती है। - यह विधि ”समानता
के सिद्धांत” पर
कार्य करती है।
- इकाई विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि
है इसमें जो अधिगम प्रक्रिया
होती है वह व्यवस्थित
होती है। - इकाई विधि अध्ययन में महत्वपूर्ण होती है इस विधि
द्वारा ही अध्यापक दैनिक
पाठ योजना का निर्माण करता
है। - यह विधि छात्रों
को स्वयं अध्ययन करने के लिए प्रेरित
करती है। - इकाई विधि में संपूर्ण विषय वस्तु को ध्यान में
रखा जाता है। - इस विधि द्वारा
विद्यार्थियों में व्यवहारिक ज्ञान एवं चिंतन शक्ति का विकास होता
है।
डाल्टन पद्धति के जनक/ जन्मदाता–कुमारी हेलेन पार्खस्ट
अमरीका के डाल्टन नामक
स्थान में 1912 से 1915 के बीच कुमारी
हेलेन पार्खर्स्ट्र ने 8 से 12 वर्ष तक की आयु
वाले बालक हेतु शिक्षा की एक नई
विधि प्रयुक्त की जिसे डाल्टन
योजना कहते हैं
डॉल्टन विधि के महत्वपूर्ण तथ्य
- इस विधि का
निर्माण कक्षा में होने वाले शिक्षण के दोषों को
दूर करने हेतु किया गया था। - इसमें हर विषय का
अध्ययन करने हेतु कक्षा की जगह एक
प्रयोगशाला होती है जिसमें उस
विषय के अध्ययन से
संबंधित पाठ्य सामग्री होती है। - विद्यार्थी प्रयोगशाला में बैठकर अध्ययन करते हैं तथा विषय से संबंधित अध्यापक
कक्षा/ प्रयोग करते है। और उनके कार्यों
की जांच करते हैं। - इस विधि में
अध्यापक छात्रों को कुछ निर्धारित कार्य असाइनमेंट देते है जिन्हें विद्यार्थी
को दिए हुए समय के भीतर करना
होता है। - इस विधि द्वारा
कार्य करने में बालकों को पूर्ण स्वतंत्रता
दी जाती है। - अध्यापक केबल “पथ प्रदर्शक” का कार्य करता
है।
- बालकों को पुणे स्वतंत्रता
दी जाती है। - कार्य/असाइनमेंट हेतु हर विद्यार्थियों को
निश्चित समय दिया जाता है। - इस विधि द्वारा
बालकों में स्वयं कार्य करने की क्षमता का
विकास होता है।
इस विधि में
शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों ही सक्रिया रहते
हैं।
इस शिक्षण विधि
में ज्ञान मूर्त से अमूर्त रूप
में दिया जाता है।
प्रदर्शन विधि का प्रयोग– गणित
एवं विज्ञान विषयों में
- सरल से कठिन की
ओर - मूर्त से अमूर्त की
ओर
प्रदर्शन विधि का सतत मूल्यांकन
- अधिगम में विद्यार्थियों की सहभागिता
- संसाधनों को आयोजित करने
का तरीका ज्ञात करना
- यह एक मनोवैज्ञानिक
विधि है। - प्रदर्शन विधि द्वारा प्रदर्शन को धीमी धीमी
गति से धीरे–धीरे
दिया जाता है जिससे विद्यार्थियों
में स्थाई ज्ञान का विकास होता
है। - प्रदर्शन विधि के माध्यम से
कक्षा में रुचि बनी रहती है। - यह
विद्यार्थियों को वैज्ञानिक विधि
का प्रशिक्षण प्रदान करती है। - इस विधि द्वारा
प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है। - छात्रों में प्रदर्शन विधि द्वारा समझे गए ज्ञान से
चिंतन एवं निरीक्षण शक्ति का विकास होता
है।
प्रदर्शन विधि के दोष–
- यह विधि “Learning By Doing” के सिद्धांत पर
कार्य नहीं करती है। - अधिक संख्या वाले विद्यार्थियों हेतु यह विधि प्रभावशाली
नहीं होती है।
शब्दार्थ विधि/ अर्थबोध विधि
इस विधि में
शिक्षक, विद्यार्थियों को कठिन शब्दों
का अर्थ कराते हुए शिक्षण करवाता है यह प्राथमिक
एवं माध्यमिक कक्षाओं हेतु उपयोगी है।
पाठ्यपुस्तक विधि
इस विधि में
बच्चों को विषय से
संबंधित पुस्तक दी जाती है
इस पुस्तक में व्याकरण से संबंधित टॉपिक्स
के नियम एवं उदाहरण दोनों दिए हुए होते हैं। शिक्षक उन नियमों को
उदाहरण के माध्यम से
समझाता है और अभ्यास
करवाता है।
चित्र रचना विधि में विद्यार्थियों को कुछ चित्र
दिए जाते हैं उन क्षेत्रों से
संबंधित छात्र को कहानी लिखने
को कहा जाता है।
जैकटॉट विधि में बालक अध्यापक द्वारा लिखे गए शब्दों का
अनुकरण कर शब्द को
लिखना एवं अभ्यास करना सीखता है।
जैकटॉट विधि प्राथमिक स्तर पर उपयोगी है।
इस
विधि में विद्यार्थी “अ”का निर्माण खंड
खंड करके सीखते हैं ।
खेल विधि के प्रवर्तक–काल्ड वेलकुक
इस विधि में
छात्र खेल–खेल से सीखता है।
प्रयोग–विज्ञान विषय में
शिक्षण
विधियाँ और उनके प्रतिपादक PDF
शिक्षण विधियाँ और उनके जनक या शिक्षण विधियां और उनके प्रतिपादक आदि से सम्बन्धित क्वेश्चन अक्सर TET EXME, SUPER TET EXAME, SAHAYAK ADHYAPAK EXAME में पूंछे जाते है।
क्रम संख्या |
शिक्षण विधियाँ |
प्रतिपादक |
1 |
आगमन विधि |
अरस्तु |
2 |
निगमन विधि |
प्लेटो |
3 |
बेसिक शिक्षा पद्धति |
महात्मा गांधी |
4 |
हरबर्ट विधि |
हरबर्ट |
5 |
प्रश्नावली |
बुडबर्थ |
6 |
खेल विधि |
हेनरी कोल्डवेल कुक |
7 |
ब्रेल पद्धति |
लुई ब्रेल |
8 |
संवाद विधि |
प्लेटो |
9 |
समाजमिति विधि |
एल. मोरेनो |
10 |
समस्या समाधान विधि |
सुकरात |
11 |
मांटेसरी विधि |
मारिया मांटेसरी |
12 |
किंडर गार्डन |
फ्रोबेल |
13 |
डाल्टन विधि |
हेलन पार्कहर्स्ट |
14 |
खोज विधि |
आर्मस्ट्रांग |
15 |
प्रक्रिया विधि |
कमेनियस |
16 |
प्रश्नोत्तर |
सुकरात |
17 |
पर्यटन विधि |
पेस्टोलॉजी |
18 |
वैज्ञानिक विधि |
गुडवार स्केट्स |
19 |
ड्रेकाली शिक्षण विधि |
ड्रेकाली |
20 |
प्रोजेक्ट विधि |
विलियम हेनरी किलपैट्रिक |
21 |
मूल्यांकन विधि |
जे .एम राइस |
22 |
इकाई उपागम |
एच. सी मॉरीसन |
23 |
सूक्ष्म शिक्षण विधि |
राबर्ट |
24 |
विनेटिका विधि |
कार्लटन बाशबर्न |
शिक्षण,अर्थ,परिभाषाएँ,प्रकार इसकी विशेषताएं,समस्याएँ प्रकृति एवं शिक्षण सूत्र |
|
अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ |
|
स्कूल नियोजन में प्रधानाचार्य की भूमिका तथा प्रबन्धीय कार्य |
|
व्यक्तित्व का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ,महत्व, प्रकार,मापन की विधियाँ एवं वर्गीकरण तथा प्रभावित करने वाले कारक |
|
योजना विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि (Project Method) अर्थ,जनक,सोपान,परिभाषा,सिद्धान्त,कार्यविधि, विशेषताएँ, प्रकार,लाभ, हानि |
|
व्यक्तित्व का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ,महत्व, प्रकार,मापन की विधियाँ एवं वर्गीकरण तथा प्रभावित करने वाले कारक |