विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ, आवश्यकता,उद्देश्य, लक्षण, एवं महत्व (शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशासन
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  BTC/DELED 4th Semester
Note

SUBJECT:- शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशासन 

 

विद्यालय प्रबन्धन  का अर्थ (स्कूल मैनेजमेंट क्या है?)

विद्यालय प्रबंधन का क्या अर्थ है? तब हम कह सकते है की “विद्यालय
प्रबन्ध से अभिप्राय है कि किसी भी संगढन या संस्था द्वारा अपने विकास व लक्षयों  पूर्ति के लिये योजना बनाना व उसका बेहतर क्रियान्वयन
करना तथा उसके लिए सामूहिक रूप से सतत प्रयास करना”|

विद्यालय
शिक्षा प्रणाली की मूल इकाई
होती है और विद्यालय
प्रबन्धन की मूल इकाई
कक्षा होती है जहाँ पर
देश का भविष्य का
निर्माण किया जाता है | शिक्षा सदैव भविष्य के निर्माण के
लिए दी जाती है|  शिक्षा
ही एक ऐसा माध्यम
है जिसकी सहायता से जीवन की
तैयारी की जाती है
|इन सभी कार्यों को सुचारु रूप
से संचालन  के
लिये विद्यालय प्रबंधन का विशेष महत्व
है

  1. हैने के
    अनुसार
    व्यवस्था वस्तुओं तथा सेवाओं के उस नियमित
    क्रयविक्रय, हस्तान्तरण अथवा विनिमय को काबते है
    जो लाभ कमाने के लिये किया
    जाता है
  2. आलीवर शैल्डेन
    के
    अनुसार
    प्रबन्धन,उद्योग की वह जीवन
    दायिनी शक्ति जो संगठन को
    शक्ति देता है, संचालित करता है एवं नियन्त्रित
    करता है
  3. थियोहेमन के
    अनुसार
    प्रबन्धन एक विज्ञान के
    रूप में , प्रबंधन एक उच्च स्तरीय
    प्रबन्धन समूह के रूप में
    तथा प्रबन्धन एक विज्ञान के
    रूप में व्यक्त किया जाता है

 प्रमुख बिन्दु 

  • विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ 
  • विद्यालय प्रबन्धन की परिभाषाएँ 
  • विद्यालय प्रबन्धन की आवश्यकता 
  • विद्यालय प्रबन्धन के उद्देश्य 
  • विद्यालय प्रबन्धन  लक्षण 
  • विद्यालय प्रबन्धन विशेषता 
  • विद्यालय प्रबन्धन के घटक 
  • विद्यालय प्रबन्धन  की अवधारणा 
  • विद्यालय प्रबन्धन महत्व 
  • विद्यालय प्रबन्धन के क्षेत्र के घटक 
  • विद्यालय प्रबन्धन की समितियाँ 
  • विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन 
  • विद्यालय प्रबन्धन समिति की बैठक 
  • विद्यालय प्रबन्धन समिति के कार्य 
  • विद्यालय प्रबन्धन के आकलन के लिये समितियाँ 
  • विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्व 
विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ, आवश्यकता,उद्देश्य, लक्षण, एवं महत्व

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विद्यालय प्रबन्धन की परिभाषा

  1. लूथर गुलिक
    के
    अनुसार
    विद्यालय प्रबन्धन सत्ता का औपचारिक ढाँचा
    है जिसके अंतर्गत निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के
    लिये विभागीय कार्यों को क्रमबद्ध रूप
    से विभाजन करना, परिभाषित करना तथा समन्वित करना सम्मिलित होता है
  2. हेरोल्ड कीजन  के अनुसार
    विद्यालय प्रबन्धन मानवीय एवं भौतिक साधनों से प्राप्ति के
    लिये समन्वय करना है
  3. जेम्स लुंडे
    के
    अनुसार
    विद्यालय प्रबंधन मुख्य रूप से किसी विशिष्ट
    उद्देश्य के लिए प्रयोगों
    को नियोजित, समन्वित, अभिप्रेरित एवं नियन्त्रित करने की कला है
  4. जेम्स लुंडे
    के
    अनुसार
    शिक्षण एक व्यवसाय है
     विद्यालय
    प्रबन्धन मुख्यरूप से किसी विशिष्ट
    उद्देश्य के लिये प्रयासों
    को नियोजित, समन्वित, अभिप्रेरित एवं नियंत्रित करने की कला है
  5. हेरोल्ड कीजन
    के
    अनुसार
    विद्यालय प्रबन्धन माननीय एवं भौतिक साधनों से उद्देश्यों की
    प्राप्ति के लिये समन्वय
    करना है

 

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विद्यालय प्रबन्धन की आवश्यकता

निर्धारित
किये गए शैक्षिक लाछ्यों
की प्राप्त के लिये समुचित
विद्यालय प्रबन्धन की अति आवश्यकता
है | अगर प्रबन्धन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं
दक्षतापूर्ण बनाना चाहता है तो वह
मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का उचित प्रबन्धन
करे क्योंकि राष्ट्रीय विकास का आधार विद्यालय
है | विद्यालय समाज का लघुरूप है
| यही वह स्थान है
जहाँ पर छात्रों के
मानसिक विकास साथसाथ शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक,नैतिक और सांस्कृतिक विकास
का होना भी आवश्यक है
| 

विद्यालय प्रबन्धन के उद्देश्य

1 विद्यालय
प्रबन्धन का प्रमुख उद्देश्य
विद्यालय के क्रिया कलापो
को मॉनीटर करना

2 शिक्षा
के आदर्शो एवं उद्देश्यों की जानकारी देना

3 विद्यालय
के विकास के लिये योजनाओं
का निर्माण करना

4 विद्यालय
को चलने के लिए कुशल
प्रशासन की व्यवस्था करना

5 विद्यालय
में उपयोगी एवं व्यावहारिक फर्नीचर की व्यवस्था करना

6 शिक्षण
कार्यो के लिए आवश्यक
उपकरण जैसेब्लैक बोर्ड, चाक, श्रव्यद्रश्य साधनों की व्यवस्था करना

7 विद्यालय
में एक परिचालन कोष
बनाना जिससे राज्यकीय सहायता से बेतन तथा
अन्य आवश्यक व्यय को वहन किया
जा सके

8 दानदाताओं
से आर्थिक सहायता प्राप्त करना

9 विद्यालय
को हर प्रकार की
आलोचनाओं से सुरक्षित रखना

10 विद्यालय
और समुदाय में स्वस्थ्य सम्बन्ध स्थापित करना

11 विद्यालय
में पुस्तकालय की व्यवस्था करना

12 विद्यालय
की वित्तीयप्रबन्धन को नियमानुसार चलाना

13 विद्यालय
में होने वाले आय और व्यय
का दैनिक हिसाब रखना

14 विद्यालक
के मुख्याध्यापक के कार्यकाल के
लिये आवश्यक उपकरणों का प्रबंधन करना

 

विद्यालय प्रबन्धन के लक्षण

विद्यालय
प्रबन्धन के निम्नलिखित लक्षण
है

1 व्यवहारिकता

प्रशासन
सम्बन्धी सभी कार्य व्यावहारिक होने चाहिये तथा विद्यालय के उद्देश्य, नीतियाँ,
कार्य, नियम आदि सभी मानवीय तथा सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप होने
चाहिये की सैद्धान्तिक
जिससे वे समाज के
लिये वे उपयोगी हो
सके |

2 विद्यालय प्रबन्धन
का
स्वरुप

विद्यालय
प्रबन्धन का स्वरुप सदैव
गतिशील होना चाहिये क्योंकि  किसी
भी राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक
तथा राजनैतिक आधार पर विद्यालय प्रबन्धन
के स्वरुप की संरचना की
जाती है | सामाजिक,आर्थिक तथा राजनैतिक जैसे तत्वों में परिवर्तन होने पर प्रशासन में
परिवर्तन होता रहा है |

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3 विद्यालय प्रबन्धन
की
प्रगति

विद्यालय
प्रबंधन की प्रगति हमेशा
गतिशील तथा नियन्त्रित होती है क्योंकि विद्यालय
प्रबन्धन के अन्तर्गत कार्य
की प्रकृति यान्त्रिक तथा स्वाचालित होकर कार्यशील
एवं नियन्त्रित होती है |

4 विद्यालय प्रबन्धन
की
प्रक्रिया

विद्यालय
प्रबन्धन एक मानवीय प्रक्रिया
है | जो सामाजिक, राजनैतिक,
मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक आदि परस्थितियों में प्रभावित होती है तथा विद्यालय
प्रबन्धन की रचना उसके
मानवीय तत्वों के द्वारा 
होती है जिसमे मौलिक
तत्वों को उन्ही के
अनुरूप लिया जाता है |

5 निति तथा
कार्यक्रम
निर्धारण

निति
तथा कार्यक्रम निर्धारण करने में विद्यालय प्रबन्धन के द्वारा शैक्षिक
नीतियों तथा कार्यक्रम में सभी व्यक्तियों का सहयोग किया
जाना चाहिये जिससे प्रशासन में जनतन्त्रीय कार्य कार्य व्यवस्था विकसित होती है | 


विद्यालय प्रबंधन की विशेषताएँ

  1. विद्यालय
    प्रबन्धन विद्यालय की एक शाखा
    के रूप में विकसित हो रहा है
  2. विद्यालय
    प्रबन्धन के सिद्धान्त तथा
    व्यवहार में परिवर्तन रहा है
  3. प्रबन्धन
    कार्य से जुड़े हुए
    सभी लोंगो में सहयोग की भावना होनी
    चाहिए
  4. सामूहिक
    हितों पर बल देना
  5. अच्छे
    प्रबन्धन से मानवीय संसाधन,
    शैक्षिक सुविधाएँ जुटाने एवं वातावरण के निर्माण में
    सहयोग मिलना  

 

विद्यालय प्रबन्धन के घटक

विद्यालय
प्रबन्धन की निम्न घटक
होते है

नियोजन,
प्रशासन, संगठन, निर्देशन, नियन्त्रण


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विद्यालय प्रबन्धन की अवधारणा

विद्यालय
प्रबन्धन की अवधारणा के
अन्तर्गत सर्वप्रथमप्रबन्धनतथास्वामित्वको एक ही
अर्थ में प्रयुक्त करते थे परन्तु आज
यह भिन्न है | इसकी अवधारणा विद्यालय  तरह
है

  1. प्रबन्धन
    एक विकास का साधन तथा
    अधिकार तंत्र है
  2. प्रबन्धन
    एक कला तथा विज्ञान है
  3. प्रबन्धन
    एक विकास का साधन है
  4. प्रबन्धन
    एक अधिकार तंत्र है
  5. प्रबन्धन
    कार्य कराने की सार्वभौमिक प्रक्रिया
    है
  6. प्रबन्धन
    संगठित समूह से कार्य कराने
    का एक तंत्र है
  7. प्रबन्धन
    एक व्यवसाय है और इसकी
    अपनी आचार्य संहिता है
  8. प्रबन्धन
    पर्यावरण की गुडवत्ता बनाये
    रखने का कार्य है

विद्यालय प्रबन्धन का महत्व

विद्यालय
को गतिशील रखने के लिए विद्यालय प्रबन्धन एक इंजन की भूमिका निभाता है जिस प्रकार बिना
इंजन के मोटरसाइकिल, कार, बस आदि को नहीं संचालित किया जा सकता है ठीक उसी तरह बिना
उचित प्रबंधन के विद्यालय का संचालन करना असंभव है| 

विद्यालय एक सामाजिक संस्था हैऔर इसे एक विशेष दायित्व का निर्वाह करना पड़ता है यही वह स्थान है जहाँ पर विद्यार्थी
समाज के सदस्यों के रूप में शिक्षा ग्रहण करते है | इस तरह विद्यालय का प्रमुख केन्द्र
विद्यार्थी है |  वर्तमान में विद्यालयों में  छात्रों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है जिससे विद्यालय
प्रबन्धन की समस्या अधिक व्यापक और जटिल हो रही है जिस कारण विद्यालय क्षेत्रों का
विस्तार किया जा रहा है तथा नयी-नयी विधियों, प्रविधियों तथा मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों
को पद्य सामग्री में स्थान दिया जा रहा है |

 विद्यार्थियों के बहुमुखी विकास के लिये
विद्यालय में योग्य अध्यापक, उपयुक्त भवन, खेल कूद की उचित व्यवस्था, उचित पाठय सामग्री
आदि का उचित प्रबंध हो रहा है वही माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के विद्यालयों
में बुद्धि तथा योग्यता परीक्षाओं को निरन्तर बढ़ावा दिया जा रहा है | जिससे विद्यालयों
की समाज तथा राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्यों में लगातार वृद्धि होती जा रही है | जिससे
विद्यालय प्रबंधन का महत्व बढ़ता ही जा रहा है |

विद्यालय प्रबन्धन के क्षेत्र के घटक 

विद्यालय प्रबन्धन क्षेत्र का अध्ययन 4 घटकों में किया जाता है। 

  1. नियोजन के कार्यक्रम (Programme Planning)
  2. शिक्षा विकास का लक्ष्य (Goal Development)
  3. कार्यक्रमों की व्यवस्था करना Organization)
  4. प्रबन्धन के कार्यों का आकलन करना (Assessment)

विद्यालय प्रबंधन समिति

विद्यालय प्रबंधन समिति (एस.एम.सी.) का गठन निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा-21 एवं राज्य नियम, 2011 के नियम 3 एवं 4 के अनुसार विद्यालय में समुदाय की सहभागिता व स्वामित्व बढ़ाने के लिए किया गया है । विद्यालय प्रबंधन समिति के दो भाग होते हैं, 

  1. साधारण सभा 
  2. कार्यकारिणी समिति।

साधारण सभा –साधारण सभा में विद्यालय में अध्ययनरत प्रत्येक विद्यार्थी के माता-पिता /संरक्षक, समस्त अध्यापक, सम्बन्धित कार्यक्षेत्र में निवास करने वाले सभी जनप्रतिनिधि एवं समिति की कार्यकारिणी समिति में निर्वाचित/ मनोनीत शेष सदस्य होते हैं।

साधारण सभा के सदस्य 

  1. सम्बन्धित विद्यालय में अध्ययनरत प्रत्येक विद्यार्थी / बालक के माता-पिता या संरक्षक (माता एवं पिता दोनों के जीवित न होने की स्थिति में संरक्षक)
  2. सम्बन्धित विद्यालय का प्रत्येक अध्यापक / प्रबोधक।
  3. सम्बन्धित कार्य क्षेत्र में निवास करने वाले जिला प्रमुख / प्रधान / सरपंच /नगर पालिका अध्यक्ष ।
  4. सम्बन्धित कार्य क्षेत्र में निवास करने वाले समस्त जिला परिषद सदस्य, नगर पालिका पार्षद / पंचायत समिति सदस्य/वार्ड पंच।
  5. समिति की कार्यकारिणी समिति में निर्वाचित/ मनोनीत शेष सदस्य जो उपरोक्त में शामिल नहीं हो।
विद्यालय प्रबन्धन समिति का गढन 
विद्यालय प्रबन्धन समिति का गढन निम्न प्रकार किया जाता है। 
  1. विद्यालय प्रबन्धन समिति का अध्यक्ष- 11 सदस्यों में से कार्यकारिणी समिति के सदस्यों द्वारा निर्वाचित 
  2. उपाध्यक्ष-समिति  साधारण सभा द्वारा उसके माता पिता या संरक्षक सदस्यों में से 
  3. निर्वाचित सदस्य-कुल 11 सदस्य जिनमे कम से कम 6 महिलाएँ, एक अनुसूचित जाति तथा एक अनुसूचित जनजाति का 
  4. पदेन सदस्य– इसकी सँख्या 1 होती है जो ग्राम पंचायत अथवा नगर पालिका के जिस वार्ड में विद्यालय स्थित है उस वार्ड का वार्ड पंच या पार्षद 
  5. पदेन सदस्य सचिव-सँख्या 1 होती है। जो प्रधानाध्यापक होता है। प्रधानाध्यापक के न होने  वरिष्ठ अध्यापक बनता है। 
  6. निर्वाचित अध्यापक- विद्यालय के अध्यापकों के द्वारा समिति हेतु निर्वाचित एक अन्य महिला अथवा पुरुष अध्यापक 
  7. मनोनीत सदस्य- इनकी संख्या 2 होती है। 
विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक
समय -समय पर विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विद्यालय में विभिन्न विकास कार्यों को कराने के लिए प्रस्ताव पारित किये जाते है। साथ ही मौजूदा राज्य सरकार के द्वारा विद्यालय तथा उसमे पढ़ने वाले बच्चो के लिये छात्र संख्या के अनुसार धनराशि उपलब्ध करने पर भी प्रकाश डाला जाता है। इस प्रकार उपलब्ध धनरराशि को विद्यालय प्रबंधन समिति कार्य योजना बनाकर खर्च करती है। विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक के अवसर पर ग्राम, विद्यालय प्रबंधन समिति की अध्यक्ष,सचिव के साथ अन्य सम्बन्धित लोग उपस्थित रहते है। 

विद्यालय प्रबंधन समिति  के कार्य 

विद्यालय प्रबन्धन समिति के निम्न लिखित कार्य है। 

  1. विद्यालय की कार्य प्रणाली का अनुश्रवण करना। 
  2. विद्यालय के आस-पास के सभी बालकों का नामांकन तथा उनकी निरन्तर उपस्थिति को सुनिश्चित करना। 
  3. निः शक्तताग्रस्त बालकों को चिन्हित करना तथा उनका नामांकन सुनिश्चित करना। 
  4. विद्यालय के मध्यान भोजन कार्यक्रम के कार्यान्वयन का अनुश्रण करना। 
  5. विद्यालय के आस पडौस के 6-14 आयु वर्ग के सभी बालको के विद्यालय में नामांकन तथा उनकी सतत उपस्थिति को सुनिश्चित करेगी।
  6. विद्यालय के लिये राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मान एव मानको की पालना पर निगरानी रखना। 
  7. विद्यालय की अभिप्राप्तियों एवं व्यय का अनुश्रण करना। 
  8. विद्यालय में अध्यापकों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना। 
  9. बाल अधिकारों के हनन सम्बन्धी प्रकरणों को स्थानीय प्राधिकारी के ध्यान में लाना। 
  10. आवश्यकताओं का चिन्हीकरण करते हुए योजना का निर्माण करना 
  11. 6-14 आयु वर्ग के विद्यालय में कभी भी प्रवेश न लेने वाले (नेवर एनरोल्ड) तथा ड्रॉप आउट बालकों के लिए किये गये शिक्षा व्यवस्था संबंधी प्रावधानों की क्रियान्विति पर निगरानी रखना। 
  12. विद्यालय विकास योजना का निर्माण करना तथा उसकी संस्तुति करना। 
  13. विद्यालय में मध्यान्ह भोजन योजना के क्रियान्वयन पर निगरानी रखना। 
  14. विद्यालय की आय एवं व्यय का वार्षिक लेखा तैयार करना। 
  15. विद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों की नियमित समीक्षा कर शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाना।।
  16. समय-समय पर विद्यालय के बालकों के स्वास्थ्य की जांच करवाना तथा बच्चो के लिए नियमित स्वास्थ्य कैम्पों का आयोजन करवाना।
  17. समय-समय पर ड्रॉप आउट दर पर नजर रखना तथा सभी बालको का विदयालय में नामांकन एवं ठहराव सुनिश्चित करना, इसके लिए निःशुल्क पाठ्य पुस्तको के वितरण, शिक्षण सामग्री, शालागणवेशं आदि समय पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था करना।
  18. अभिभावकों एवं अध्यापको की समय-समय पर संयुक्त बैठक आयोजित करना एवं उन बैठकों में रिपोर्ट काई उपलब्धि स्तर, कक्षा कार्य एवं गृहकार्य आदि के सम्बन्ध में विचार विमर्श करते हुए सुधार हेतु आवश्यक कार्यवाही करना।
  19. विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न राष्ट्रीय, क्षेत्रीय पर्वो, नि:शुल्क पाठ्य पुस्तक वितरण, छात्रवृत्ति वितरण, विद्यालय का सत्र प्रारंभ होने, दीपावली एवं शीतकालीन अवकाश के प्रारंभ एवं पश्चात विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेना एवं समाज के सभी वर्गो को इन कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना ।

विद्यालय प्रबन्धन के आकलन के लिए समितियाँ 

विद्यालय प्रबन्धन के आकलन के लिए निम्न समितियों का गढन किया जाता है-

  1. शिक्षक परिषद् (Staff Council)
  2. छात्र परिषद् (Student Council)
  3. शिक्षक-समितियाँ (Teachers Council)
  4. विशिष्ट समितियाँ (Special Committees)
  5. सामाजिक सेवा समितियाँ (Social Service Committees)
  6. व्यावहारिक मानदण्ड (Practical Critera)

विद्यालय की आवश्यकता एवं महत्व (Need and importance of school)

विद्यालय भवन के आधुनिक अर्थ को व्यापक रूप से लिया जाता है।  विद्यालय भवन शब्द के अन्तर्गत विद्यालय के कमरे ही नहीं अपितु खेल के मैदान, विभिन्न प्रकार का फर्नीचर, प्रयोग में आने वाले विभिन्न उपकरण तथा अन्य सहायक सामग्री भी आती है। 

देश में शिक्षा की बढ़ रही आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उपयुक्त भवनों का निर्माण एक प्रमुख समस्या है।  स्वतंत्रता के बाद शिक्षा प्रदान करने के लिए किसी तरह शिक्षकों की आवश्यकताओं को तो पूरा कर लिया गया परन्तु भवनों की व्यवस्था देश की विभिन्न समस्याओं, विशेष रूप से वित्तीय कठिनाईयों के कारण सम्भव न हो सकीं। 

विद्यालय की आवश्यकता की बात करे तब हम यह कह सकते है विद्यालय स्कूल के समय का घर है जिस प्रकार बालक के विकास के लिये परिवार का विशेष योगदान रहता है ठीक इसी तरह एक आदर्श विद्यालय का प्रभाव भी बालक पर पड़े बिना नहीं रह सकता। 

सही अर्थ में विद्यालय बालकों एवं समुदाय की प्रेरणा का स्रोत है 

एस. बालकृष्ण जोशी के अनुसार –‘‘किसी भी राष्ट्र की प्रगति का निर्णय विधान-सभाओं, न्यायालयों और फैक्ट्रियों में नहीं, वरन् विद्यालयों में होता है।’’

विद्यालय की आवश्यकता क्यों होती है, विद्यालय में पाये जाने वाले विभिन्न भवनों के अनुसार विद्यालय की आवश्यकता को समझा जा सकता है। जो निम्न है –

  1. विद्यालय भवन में सभा/कक्ष की आवश्यकता –प्रत्येक विद्यालय में एक सभा का होना अति आवश्यक होता है, जिसमे छात्र-छात्रायें किसी उत्सव आदि का आयोजन होने पर उसमे एकत्रित हो सके।  इस सभा कक्ष में प्रयाप्त खिड़कियों का भी होना आवश्यक है, जिससे पर्याप्त प्रकाश और वायु उपलब्ध हो सके तथा कक्ष की प्राचीर पर सुन्दर वाक्य लिखे गए हो। 
  2. वाचनालय की आवश्यकता –विद्यालय के वाचनालय कक्ष में पर्याप्त मात्रा में मेज-कुर्सियों का होना आवश्यक है, साथ ही ें मेंजों पर राष्ट्रीय, प्रान्तीय, स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र और मासिक  साप्ताहिक पत्र एवं पत्रिकाएँ भी रखी जानी चाहियें। इन सभी से बालकों के सामान्य ज्ञान का विकास होता है तथा विभिन्न प्रकार की पुस्तकें की पुस्तकें पढ़ने से उनमे सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा प्रतियोगिताओं में भाग लेने की भावना जागृत हो जाती है। 
  3. विद्यालय में प्रयोगशाला की आवश्यकता –नाथूराम के अनुसार-“वैज्ञानिक तथ्यों, विषयों और सामान्य सिद्धान्तों के सत्यापन के लियें प्रयोगशाला का कार्य अनिवार्य सा प्रतीत होता है। कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करने, रचनात्मक शक्ति का विकास करने और समस्याओं को हल करने के लिये यदि प्रयोग करना है तो तो प्रत्येक विद्यालय में प्रयोगशाला का निर्माण करना आवश्यक होगा। 
  4. विद्यालय की कार्यशाला की आवश्यकता –विद्यालय की कार्यशाला में समुचित स्थान, सुविधाएँ एवं व्यवस्थाएँ विद्यालय से स्वीकृत कार्यानुभव के विषयों के अनुकूल होना चाहियें। कार्यशाला कक्षा  से कुछ दूरी पर स्थित हों, जिससे कक्षा की पढ़ाई में व्यावधान न पड़े  कार्यशाला में प्रकाश, हवा तथा जल का विशेष प्रबन्ध होना चाहियें। 

विद्यालय का महत्व 

विद्यालयों को यह महत्वपूर्ण स्थान निम्नलिखित कारणों से दिया जाता है- 

  1. विद्यालय विद्यार्थियों के  सम्पूर्ण उत्तरदायित्यों को निभाता है। 
  2. विद्यालय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं हस्तांतरण में सहायक है।
  3. विद्यालय को परिवार और वाह्य जीवन को जोड़ने वाली कड़ी कहा जाता है।  
  4. विद्यार्थियों के बहुमुखी प्रतिभा विकास के लिये विद्यालय को महत्वपूर्ण साधन के रूप में समझा जाता है। 
  5. राज्य के आदर्शों और विचारधाराओं को फैलाने के लिए विद्यालय को अति महत्वपूर्ण साधन माना गया है।
महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्त्तर 👇👇👇
विद्यालय प्रबंधन में मुख्य भूमिका किसकी होती है?
विद्यालय प्रबन्धन में प्रधानाचार्य की मुख्य भूमिक होती है। प्रधानाध्यापक छात्रों, अध्यापकों तथा स्थानीय समुदाय के मध्य सेतु की तरह कार्य करता है। अतः हम कह सकते है कि प्रधानाध्यापक,अध्यापकों एवं अन्य सहायक कर्मचारियों का निरीक्षणकर्ता होता है।


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