समायोजन का अर्थ क्या होता है? d el ed 1st semester

www.way2pathshala.in , तथा www.examstd.com के द्वारा BTC/DELED 1st Semester, बाल विकास एवं सीखने की प्रक्रिया (प्रथम प्रश्न पत्र) के पाठ-3 व्यक्तित्व का विकास, उनका अर्थ एवं प्रकार से समायोजन का अर्थ क्या होता है  को आप के समछ लाया गया है।

समायोजन का अर्थ (meaning of adjustment in hindi)

समायोजन दो शब्दों को मिलाकर बना है-सम और आयोजन। सम् का अर्थ है भली-भाँति, अच्छी तरह या समान रूप से और आयोजन का अर्थ है व्यवस्था अर्थात् अच्छी तरह व्यवस्था करना। समायोजन का अर्थ हुआ सुव्यवस्था या अच्छे ढंग से परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की प्रक्रिया जिससे कि व्यक्ति की आवश्यकताएँ पूरी हो जाए और मानसिक द्वन्द्व न उत्पन्न होने पाये। 

गेट्स एवं अन्य विद्वानों  अनुसार – ‘समायोजन’ शब्द के दो अर्थ हैं। एक अर्थ में निरन्तर चलने वाली एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं और पर्यावरण के बीच अधिक सामंजस्यपूर्ण सम्बन्ध् रखने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन कर देता है। दूसरे अर्थ में समायोजन एक संतुलित दशा है जिस पर पहुँचने पर हम उस व्यक्ति को सुसमायोजित कहते हैं।

एक छात्र अर्द्धवार्षिक परीक्षा में अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना अपना लक्ष्य बनाता है, पर दूसरे छात्रों की प्रतियोगिता और अपनी कम योग्यता के कारण वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल होता है। इससे वह निराशा और असन्तोष, मानसिक तनाव और संवेगात्मक संघर्ष का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में वह अपने मौलिक लक्ष्य को त्यागकर अर्थात् अर्द्धवार्षिक परीक्षा में अपनी असफलता के प्रति ध्यान न देकर वार्षिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना अपना लक्ष्य बनाता है। अब यदि वह अपने इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, तो वह अपनी परिस्थिति या वातावरण से ‘समायोजन‘ कर लेता है। पर यदि उसे सफलता नहीं मिलती है, तो उसमें ‘असमायोजन‘ उत्पन्न हो जाता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए परिस्थितियांे को अनुकूल बनाना या परिस्थितियों के अनुकूल हो जाना ही समायोजन कहलाता है। यह समायोजन व्यक्ति अपनी क्षमता, योग्यता के अनुसार करता है।

समायोजन और असमायोजन के अर्थ को निम्न प्रकार से स्पस्ट कर सकते है-

बोरिंग, लैंगफेल्ड व वेल्ड के अनुसार- “समायोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राणी अपनी आवश्यकताओं औरें आवश्यकताओं की पूर्ति को प्रभावित करने वाली परस्थितियों में संतुलन रखता है “

गेट्स व अन्य के अनुसार– “समायोजन निरंतर  चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने और अपने वातावरण के बीच संतुलन सम्बन्ध रखने के लिए अपने वयवहार में परिवर्तन करता है “

समायोजन की परिभाषा (definition of adjustmen)

बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वैल्ड के अनुसार– ‘’समायोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और इन आवश्यकताओं की पूर्ति को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखता है।’’ 

लॉरेन्स एफ. शैफर के अनुसार– ‘‘समायोजन वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति की आवश्यकताएं मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है –

  1. शारीरिक आवश्यकताएँ
  2. मानसिक आवश्यकताएँ 

भूख, त्याग, नींद कामवासना, मलमूत्र त्याग आदि शारीरिक आवश्यकताएँ हैं, जबकि सुरक्षा, स्वतंत्रता मानसिक आवश्यकताएँ है। जब इन आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है तो वह बैचेन हो जाता है और उसमें तनाव पैदा हो जाता है।

गेट्स व अन्य के अनुसार– ‘‘समायोजन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने और अपने वातावरण के बीच संतुलित सम्बन्ध रखने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है।‘‘

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि समायोजन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। साथ ही व्यक्ति, परिस्थिति तथा पर्यावरण के मध्य अपने को समायोजित करने के लिये अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है। अतः समायोजन को संतुलित दशा कहा गया है।


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